Wednesday, August 6, 2014

गणेश और तुलसी

सनातन धर्म में तुलसी माता घर-घर पूजी जाती हैं। जगन्नाथ भगवान श्री कृष्ण को तुलसी के बिना भोग ही नहीं लगता। हिंदू धर्म में तुलसी को सर्वाधिक पवित्र तथा माता स्वरुप माना जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि से भी तुलसी को औषधीय गुणों वाला पौधा माना जाता है तथा इसे संजीवनी की संज्ञा दी गई है। शास्त्रों में तुलसी को मां लक्ष्मी कहकर पुकारा गया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी तुलसी के पत्तों का सेवन अनेक रोगों के उपचार में काम आता है। अनेक ग्रंथो में भी तुलसी की महिमा का बखान हुआ है।

परंतु क्या आप जानते हैं के विष्णु प्रिया तुलसी को भगवान गणेश की पूजा में निषेध क्यों माना गया है।  पद्मपुराण के श्लोक के अनुसार-
न तुलस्या गणाधिपम्‌
अर्थात तुलसी से गणेश जी की पूजा कभी न की जाए। कार्तिक माहात्म्य के इस श्लोक के अनुसार-
गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया
अर्थात गणेश जी की तुलसी पत्र और दुर्गा जी की दूब से पूजा न करें। पवित्र तुलसी के गणेश पूजन में निषेध को लेकर शास्त्रों में एक दृष्टांत मिलता है।

पौराणिक काल में गणेश जी गंगा तट पर तपस्या में विलीन थे। इसी कालावधि में धर्मात्मज की नवयौवना कन्या तुलसी ने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर प्रस्थान किया। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पंहुची। गंगा तट पर देवी तुलसी ने युवा तरुण गणेश जी को देखा जो तपस्या में विलीन थे। शास्त्रों के अनुसार तपस्या में विलीन गणेश जी रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे। उनके समस्त अंगों पर चंदन लगा हुआ था। उनके गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पड़े थे। उनके कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था।

देवी तुलसी का मन गणेश जी की और मोहित हो गया। तब देवी तुलसी ने गणेश जी का ध्यान अपनी और आकर्षित करने हेतु उपहास किया। इस कृत्य से गणेश जी का ध्यान भंग हो गया। गणेश जी ने तुलसी से उनका परिचय मांगा तथा उनके आगमन का कारण पूछा।

इस पर गणेश जी ने देवी तुलसी से कहा के, तपस्या में विलीन किसी ब्रह्म योगी का ध्यान भंग करना अशुभ होता है तथा तुलसी द्वारा किए गए इस कृत्य को अमंगलकारी बताया। तुलसी की विवाह की मंशा जानकर गणेश जी ने स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर देवी तुलसी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

देवी तुलसी विवाह आवेदन ठुकराए जाने पर गणेश जी से रुष्ट हो गई तथा तुलसी ने क्रोध में आकार गणेश जी को श्राप दे दिया के उनके दो विवाह होंगे। श्रापित गणेश जी तुलसी से कुपित हो उठे और उन्होंने भी देवी तुलसी को श्राप दे दिया। गणेश जी ने तुलसी को श्राप दिया की तुलसी की संतान असुर होगी तथा असुरों द्वारा कुपित हो कर वृक्ष बन जाएगी। एक राक्षस की मां तथा वृक्ष बनने का श्राप सुनकर तुलसी व्यथित हो उठी तथा उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगते हुए उनकी वंदना की।

तुलसी की वंदना सुनकर गणेश जी शांत हो गए तथा उन्होंने तुलसी से कहा की भगवान श्री कृष्ण तुम्हारा कल्याण करेंगे और आपका यह दोष अमंगलकारी न हो। तब गणेशजी ने तुलसी से कहा कि तुम्हारी संतान असुर शंखचूर्ण होगा। गणेश जी ने कहा के हे तुलसी तुम वृक्ष के रूप में नारायण और श्री कृष्ण को प्रिय होगी तथा कलयुग में विश्वकल्याण हेतु मोक्षदायिनी देव वृक्ष के रूप पूजी जाएंगी परंतु मेरे पूजन में तुम्हारा प्रयोग निषेध होगा। तब से ही भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी वर्जित मानी जाती है।

शंख की इन खूबियों को जानकर रह जाएंगे हैरान

समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में एक रत्न शंख है। माता लक्ष्मी के समान शंख भी सागर से उत्पन्न हुआ है इसलिए इसे माता लक्ष्मी का भाई भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में शंख को बहुत ही शुभ माना गया है, इसका कारण यह है कि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों ही अपने हाथों में शंख धारण करते हैं। जन सामान्य में ऐसी धारणा है कि, जिस घर में शंख होता है उस घर में सुख-समृद्धि आती है।

वास्तु विज्ञान भी इस तथ्य को मानता है कि शंख में ऐसी खूबियां है जो वास्तु संबंधी कई समस्याओं को दूर करके घर में सकारात्मक उर्जा को आकर्षित करता है जिससे घर में खुशहाली आती है। शंख की ध्वनि जहां तक पहुंचती हैं वहां तक की वायु शुद्ध और उर्जावान हो जाती है। वास्तु विज्ञान के अनुसार सोयी हुई भूमि भी नियमित शंखनाद से जग जाती है। भूमि के जागृत होने से रोग और कष्ट में कमी आती है तथा घर में रहने वाले लोग उन्नति की ओर बढते रहते हैं। भगवान की पूजा में शंख बजाने के पीछे भी यह उद्देश्य होता है कि आस-पास का वातावरण शुद्ध पवित्र रहे।

शंख के प्रकार
शंख मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं -दक्षिणावर्ती, मध्यावर्ती और वामावर्ती। इनमें दक्षिणावर्ती शंख दाईं तरफ से खुलता है, मध्यावर्ती बीच से और वामावर्ती बाईं तरफ से खुलता है। मध्यावर्ती शंख बहुत ही कम मिलते हैं। शास्त्रों में इसे अति चमत्कारिक बताया गया है। इन तीन प्रकार के शंखों के अलावा और भी अनेक प्रकार के शंख पाए जाते हैं जैसे लक्ष्मी शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, गोमुखी शंख, देव शंख, राक्षस शंख, विष्णु शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, शनि शंख, राहु एवं केतु शंख।

शंख से वास्तु दोष मुक्ति का तरीका
शंख किसी भी दिन घर में लाकर पूजा स्थल में रखा जा सकता है। लेकिन शुभ मुहूर्त विशेष तौर पर होली, रामनवमी, जन्माष्टमी, दुर्गा पूजा, दीपावली के दिन अथवा रवि पुष्य योग या गुरू पुष्य योग में इसे पूजा स्थल में रखकर इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए घर में वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है। शंख में गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर में किया जाए तो इससे भी सकारात्मक उर्जा का संचार होता है।