कथा
एक समय की बात है, सात भाइयों की एक बहन का विवाह एक राजा से हुआ। विवाहोपरांत जब पहला करवा चौथ आया, तो रानी अपने मायके आ गयी। रीति-रिवाज अनुसार उसने करवा चौथ का व्रत तो रखा किन्तु अधिक समय तक व भूख-प्यास सहन नहीं कर पर रही थी और चाँद दिखने की प्रतीक्षा में बैठी रही।
उसका यह हाल उन सातों भाइयों से ना देखा गया, अतः उन्होंने बहन की पीड़ा कम करने हेतु एक पीपल के पेड़ के पीछे एक दर्पण से नकली चाँद की छाया दिखा दी। बहन को लगा कि असली चाँद दिखाई दे गया और उसने अपना व्रत समाप्त कर लिया। इधर रानी ने व्रत समाप्त किया उधर उसके पति का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा।
यह समाचार सुनते ही वह तुरंत अपने ससुराल को रवाना हो गयी।रास्ते में रानी की भेंट शिव-पार्वती से हुईं। माँ पार्वती ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है और इसका कारण वह खुद है। रानी को पहले तो कुछ भी समझ ना आया किन्तु जब उसे पूरी बात का पता चला तो उसने माँ पार्वती से अपने भाइयों की भूल के लिए क्षमा याचना की।
यह देख माँ पार्वती ने रानी से कहा कि उसका पति पुनः जीवित हो सकता है यदि वह सम्पूर्ण विधि-विधान से पुनः करवा चौथ का व्रत करें। तत्पश्चात देवी माँ ने रानी को व्रत की पूरी विधि बताई। माँ की बताई विधि का पालन कर रानी ने करवा चौथ का व्रत संपन्न किया और अपने पति की पुनः प्राप्ति की।
वैसे करवा चौथ की अन्य कई कहानियां भी प्रचलित हैं किन्तु इस कथा का जिक्र शास्त्रों में होने के कारण इसका आज भी महत्त्व बना हुआ है।द्रोपदी द्वारा शुरू किए गए करवा चौथ व्रत की आज भी वही मान्यता है। द्रौपदी ने अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखा था और निर्जल रहीं थीं। यह माना जाता है कि पांडवों की विजय में द्रौपदी के इस व्रत का भी महत्व था।
इस व्रत में अपने वैवाहिक जीवन को समृद्ध बनाए रखने के लिए और अपने पति की लम्बी उम्र के लिए विवाहित स्त्रियाँ व्रत रखती हैं। यह व्रत सायंकाल में चन्द्रमा के दर्शन के पश्चात ही खोला जाता है।हिन्दू पंचांग के कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन यह व्रत किया जाता है। इस वर्ष 2017 में यह शुभ तिथि 08 अक्तूबर को मनाई जाएगी।
सभी विवाहित स्त्रियाँ इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। चूंकि शिव-पार्वती का पति-पत्नी के युगल रूप में धार्मिक महत्त्व है इसलिए इनके पूजन से सभी स्त्रियाँ पारिवारिक सुख-समृधि की कामना करती हैं।
करवा चौथ तिथि : 08 अक्टूबर 2017, रविवार
करवा चौथ पूजा शुभ मुहूर्त : सायं 05:55 pm से 07:09 pm
चंद्रोदय समय : रात्रि 08:14 बजे
चतुर्थी तिथि प्रारंभ : 16:58 (8 अक्तूबर 2017)
चतुर्थी तिथि समाप्त : 14:16 (9 अक्तूबर 2017)
करवा चौथ: व्रत की पारम्परिक विधि के साथ जानें इससे जुड़ी प्रथाएं
सुहागिनें इस दिन सूर्योदय से पहले सुबह चार बजे के करीब शिव-परिवार की पूजा करके व्रत का संकल्प लेती हैं। वे नहा-धोकर सबसे पहले सासू मां के लिए बया निकालती हैं। ‘बया’ यानी एक थाली में फल, मिठाई, नारियल, कपड़े और सुहाग का सामान जैसे रिबन, चूडिय़ां, मेहंदी, सिंदूर, बिंदी आदि रख कर सासू मां को दिया जाता है और उनके पांव छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। इसके बाद घर की औरतें ‘सरगी’ खाती हैं। सरगी के फल, मिठाई वगैरह सासू मां की तरफ से और लड़की के मायके की तरफ से भी भेजे जाते हैं। सरगी खाने के बाद पूरा दिन जब तक रात को चांद नहीं निकलता तब तक निर्जला रह कर औरतें व्रत रखती हैं। जब रात को चांद निकलता है तो वे अर्घ्य देकर पति के हाथों जल ग्रहण करती हैं और तब उनका व्रत सम्पूर्ण होता है।
करवाचौथ की मिठास से जन्म-जन्म तक बना रहे साथ करवा चौथ पर सास बहू को सरगी में दे ये सामान सास और बहू में प्यार बढ़ाती सरगी बॉलीवुड फिल्मों में इन दिनों जिस तरह से सरगी खाने के दृश्य दिखाए जाते हैं, उन्होंने इस मान्यता को बदला है कि सरगी व्रत से पहले मात्र पेट पूजा वाला फंडा नहीं है बल्कि शाम और रात की पूजा की तरह इसका भी बहुत महत्व है। सुबह जब सास और बहू एक साथ बैठ कर सरगी खाती हैं तो उनके बीच प्यार और स्नेह भरा रिश्ता भी मजबूत होता चला जाता है। कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष में कर्क चतुर्थी अर्थात करवाचौथ का व्रत सुहागिनें और अविवाहित युवतियां अपने पति एवं भावी जीवन साथी की मंगल कामना और दीर्घायु के लिए सारा दिन निर्जल रह कर रखती हैं। इस दिन न केवल चंद्र देवता की पूजा होती है अपितु भगवान शिव पार्वती और स्वामी कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। इस दिन विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए गौरी पूजन का भी विशेष महत्व है। इसके साथ ही श्री गणेश जी का पूजन भी किया जाता है।
सरगी में छिपा प्यार और आशीर्वाद
व्रत रखने वाली महिलाओं को उनकी सास सूर्योदय से पूर्व सरगी ‘सदा सुहागन रहो’ के आशीर्वाद के साथ देती हैं, जिसमें फल, मिठाई, मेवे, मट्ठियां, फेनियां, आलू से बनी कोई सब्जी एवं पूरी आदि होती हैं। यह खाद्य सामग्री शरीर को पूरा दिन निर्जल रहने और शारीरिक आवश्यकता को पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम होती है। फल में छिपा विटामिन युक्त तरल दिन में प्यास से बचाता है। फीकी मट्ठी ऊर्जा प्रदान करती है और रक्तचाप बढऩे नहीं देती। मेवे आने वाली सर्दी को सहने के लिए शारीरिक क्षमता बढ़ाते हैं।
ऐसे रखें पारम्परिक विधि से व्रत
प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व उठ कर स्नान करके यह संकल्प बोल कर करवाचौथ व्रत का आरंभ करें :
‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये कर्क चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’
पति, पुत्र तथा पौत्र के सुख एवं सौभाग्य की कामना की इच्छा का संकल्प लेकर निर्जल व्रत रखें। भगवान शिव, पार्वती, गणेश एवं कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र का पूजन करें। बाजार में मिलने वाला करवाचौथ का चित्र या कैलेंडर पूजा स्थान पर लगा लें। चंद्रोदय पर अर्घ्य दें। पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल भरें। सुहाग की सामग्री में कंघी, सिंदूर, चूडिय़ां, रिबन तथा रुपए आदि रख कर दान करें। सास के चरण छू कर आशीर्वाद लें और फल, फूल, मेवा, मिष्ठान, सुहाग सामग्री, 14 पूरियां तथा खीर आदि उन्हें भेंट करें। विवाह के प्रथम वर्ष तो यह परम्परा सास के लिए अवश्य निभाई जाती है। इससे सास-बहू का रिश्ता और मजबूत होता है।
करवा खेलना
करवाचौथ के दिन शाम को सभी सुहागिनें खूब सज-धज कर एक नियत स्थान पर इकट्ठी होती हैं और गोल घेरे में बैठ कर अपनी पूजा की थाली एक-दूसरे के साथ बांटती हुई करवा के गीत गाती हैं। इसी दौरान पंडित जी महिलाओं को करवाचौथ की कथा सुनाते हैं।
व्रत पर विशेष
इस अवसर पर दुकानों पर मीठी और फीकी मट्ठीयां तैयार की जाती हैं। ये मट्ठीयां विशेष तौर से बहू द्वारा अपनी सासू मां को बया देने पर दी जाती है। विवाहित स्त्रियां अपनी सुविधा अनुसार इस व्रत का उद्यापन भी करती हैं। वे उद्यापन करने के लिए एक थाली में चार-चार पूडिय़ां और हलवा रख कर सासू मां को देती हैं। इसके बाद तेरह ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा के साथ विदा करती हैं। उद्यापन के समय विवाहित स्त्री के मायके में कटोरियों या गिलासों में चावल और चीनी भर कर, फल, मेवे और सामर्थ्य के हिसाब से शगुन रख कर सामान सासू मां को भेजा जाता है। सास यह सामान आंचल ले आशीर्वाद दे।