Thursday, September 18, 2014

दुर्गा पूजन​

1 उत्पत्ती
मां दुर्गा की पूजा त्रेता युग और द्वापर युग से चली आ रही है। सत्युग के सावर्णि मन्वन्तर में जब दैत्य महिषासुर ने प्रजापती ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर यह बर्दान प्राप्त किया, की उसकी मृत्यु किसी स्त्री से हो। ऐसा बर्दान प्राप्त कर वह स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया । सभीदेवता ब्रह्मा जी के पास पहुँचे और ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास सभी देवताओं को लेकर आये ।  देवताओं के मुख से उनके दु:ख का कारण जान भगवान विष्णु बोले- इस संकट​ से हमें भोलेनाथ ही  उबार सकते हैं, इस प्रकार सभी देवता मिल कर कैलाश पर्वत पर पहुँचे जहां भगवान शिव और माता पार्वती सदा विराजमान होते हैं। सभी देवताओं ने भगवान शिव और माता पार्वती को देख स्तुती करने लगे।

वंदे देवऽमापति सुरगुरुं वंदे जगत्कारणम् वंदे पन्नगभूषणं मृगधरं वंदे पशूनां पतिम्।
वंदे सूर्यशशांकवह्विनयनं वंदे मुकुंदप्रियम्, वंदे भक्तजनाश्रृयं च वरदं वंदे शिवं शंकरम्।

भगवान शिव ने जब सभी देवताओं के दु:ख को जान कर त्रिदेवों ने मिलकर एक दिव्य शक्ती को प्रकट किया ।

ॐ घण्टाशूलहलानि शड्खमुसले चक्रं धनु: सायकं हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महापूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्॥

अपने हाथों मे घण्टा, शूल​, हल​, शड्ख, मूसल​, चक्र लिए माता भगवती प्रकट हुई। तब पराम्बा ने महालक्ष्मी महासरस्वती और माता पार्वती का आह्वाहन किया और अपनी शक्ती को एकत्रित कर दो-दो स्वरूपों को प्रकट किया। १ शैलपुत्री २ ब्रह्मचारिणी ३  चन्द्रघण्टा ४ कूष्माण्डा ५ स्कन्दमाता ६ कात्यायनी ७ कालरात्री ८ महागौरी ९ सिद्धिदात्री।
इस प्रकार नव दुर्गा मिलकर अपनी सेविका योगनियों का आह्वाहन कर उन दैत्यों का बध करना आरम्भकर दिया। सर्वप्रथम मधु और कैटभ का वध किया बाद में महिष दानव का वध किया और साथ ही शुम्भ निशुम्भ​,रक्त वीज नमक दैत्य का वध किया । और इस प्रकार देवताओं ने मिल कर माता जगदम्बा की स्तुती की -

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य​। 
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य​॥

दूसरी नवरात्री अश्विन माह में मनाया जाता है। देवीभागवतानुशार भगवान राम जी ने रावण को पराजित करने के लिए नवदिन तक व्रत करके माता दुर्गा को प्रशन्न कर लंका पर विजय प्राप्त किया, तभी से यह दिन विजयदशवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ और इस प्रकार अश्विन माह के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक यह व्रत कर माता पराम्बा का कृपा प्राप्त की जाती है।

2 मंत्र
इस व्रत में नवार्ण मंत्र का जप (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुन्डायै विच्चै ) अवश्य करना चाहिए।
  साथ ही दुर्गा सप्तसती का पाठ करें।

क्यों करते हैं
मार्कण्डेय पुराणानुसार
स्वारोचिषेऽन्तरे पूर्वं चैत्रवंशसमुद्भव​:। सुरथो नाम राजा भूत्समस्ते क्षितिमण्डले॥
अर्थात​- स्वारोचिषमन्वन्तर में सुरथ नाम के एक राजा थे, जो चैत्र वंशमें उत्पन्न हुए थे। एक बार​ युद्ध में परास्त हुए और उनका सारा राज्य छीन लिया गया। तब वन में भटकते हुये राजा सुरथ मेधा मुनि के आश्रम में जा पहुँचे। राजा ने अपना दुख मेधा मुनि को बताया तब उन्होंने माता दुर्गा के नवरात्रि व्रत रहने कहा इस प्रकार राजा उसी आश्रम में रहकर चैत्र की नवरात्रि व्रत को किया नौ दिन तक कठोर व्रत कर माता दुर्गा के प्राकट्य की महिमा श्रवण की, राज के इस व्रत से प्रसन्न हो माता भगवती प्रकट हो गई। राजा ने माता से  अपने दूसरे जन्म तक नष्ट न होने बाला राज्य मांगा साथ ही अपने सत्रुओं से अपना राज्य पुन​: प्राप्त करने का  आशिर्वाद मांगा । और इस प्रकार राजा ने पुन: अपना राज्य प्राप्त किया तभी से चैत्र माह की शुक्ल पक्ष में की प्रतिपदा से नवमी तक यह किया जाता है।

4 उच्चारण
दुर्गा सप्तसती का पाठ संस्कृत में करना उत्तम है, जिन्हें संस्कृत पढ़ना नहीं आता वे त्रुटियों से बचने के लिए हिन्दी का पाठ कर सकते हैं। पाठ करते समय पवित्रता का ध्यान रखें। उच्चारण स्पष्ट, शुद्ध हो यह भी ध्यान रखें।

5  पाठ संख्या
दुर्गासप्तसती का पाठ नौ दिनों में नौ पाठ पूरा करना चाहिए।
 कब करें
यह व्रत वर्ष में दो बार किया जाता है । एक चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक दूसरा अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक इस व्रत को मनाया जाता है।

मुहूर्त​
२५ सितम्बर दिन गुरुवार​ अश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रात:काल ०६ बजकर १४ मिनट से ०७ बजकर ५४ मिनट तक रहेगा इसके पश्चात दोपहर ११:४९ से १२:३६ मिनट तक के मध्य में भी घट स्थापना किया जा सकता है ।

कहां करें
यह व्रत आप घर में अथवा मन्दिर में कर सकते हैं ।

कैसे करें
सर्व प्रथम माता के पूजन में लगने बाले सामग्री को एकत्रित करें, माता का झांकी तैयार करें। व्रह्मण के द्वारा सोडषोप्चार विधी से पूजन करें। घट स्थापन करें। अखण्ड दीप का पूजन करें। दुर्गासप्तसती का नौ दिवस पर्यन्त पाठ करें।
10  पूजा विधी
पवित्र वस्त्र धारण कर माता की प्रतिमा के सम्मुख रक्तवर्णासन में वैठें। देह शुद्धी, अन्तर शुद्धी, आचमन, आसन शुद्धी, तिलक धारण, उपवीत धारण, ज्योति प्रज्वलन आदि से प्रारम्भ कर, माता गौरी,गणपती जी का ध्यान आह्वाहन पूजन करें, अब वरुण कलश​, मात्रिका, नवग्रह, पञ्चलोकपाल​, भैरवदेव और हनुमान जी का पूजन कर घटस्थपन संकल्प माता पराम्बा का आह्वाहन पूजन सोलह उपचारों से करें। अब सप्तसती पाठ का संकल्प कर विनयोग न्यास करने के बाद पाठ का प्रारम्भ करें। पाठ पूरा हो जाने पर आरती पुष्पाञ्जली कर क्षमा प्रार्थना करें।

11  सावधानीयाँ
व्रत के समय में चावल​, प्याज​, लहसुन का उपयोग भोजन में न करें

 झूठ​, ईर्शा, द्वेश, क्रोध से बचें। सयन के लिए चारपाई के स्थान पर भूमि का उपयोग करें।

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